________________ .. निशीथविचारा: अर्थो-थेराण वि वासासु धुवलोओ चेव / असहू गिलाणाणं तु पजोसवणराइं नाइक्कमति / वर्षासुच-मोत्तुं पुराण-भावियसड्ढे सञ्चित्तसेसपडिसेहो / मा हाहिति निद्धम्मो भोयणमोए य उडाहो // 3174 // अर्था यथा-जइ सोभण्णइ-बरसंते मा नीहि, आउक्कायविराहणा भवाइ / ताहे सो भणाइ-जइ एए जीवा तो निसग्गमाणे किं भिक्खं गिहह ? वियारभूमि वा गच्छह ? कहं वा तुम्भे अहिंसगा साहवी य वासातु चलणे न धोवंति पायलेहणियाए निल्लिहंति ? ताहे सो भगाइ-अनुई चिक्खलु मदिऊण पाया न धोवंति, असुइणो एए समटस्स य कओ धम्मो ? / एवं विप्परिणओ उन्निक्खमइ / सागारियं ति काउं साधो पाए धावंति तो असामायारी पाउसदोसो य / वाले पड़ते अभाविए सेहे वसहीओ अनिते जइ मंडलीए भुंजइ तो उडाहं करेइ, पाणा इव ऐए परोप्परं संसर्ट भुंजंति / अहंपि णेहि विट्टालिआ ताहे विप्परिणमइ / अह मंडलीए न भुंजइ ताहे असमायारी। जइ वा ते साहवा निसग्गमाणे मत्तएसु उच्चारपासवणाई आयरंति, सो य तं दद्रं विप्परिणामेजा। वर्षासु च-मणवयणकायगुत्तो दुश्चरियाई च निच्चमालोए / अहिगरणे उ दुरूवग पजाओ चेव दमओ य // 3179 // प्रतिष्ठाविषयो यथा-ताहे सो विजमाली भणाइ-इयाणि किं मया कायब्वं ? अच्चुयदेवेण भणियं बोहिनिमित्तं जिणपडिमावयारं करेहि / तओ सो विजमाली अट्टाहियामहवंते गंतुं चुल्लहिमवंत गोसीलदारुमयं पडिमं देवयाणुभावेण निव्वत्तेइ, रयणविचित्ताभरणेहिं सबालंकारविभूसियं करेइ / तया ताहे पभावई. पहाया कयकोउयमंगला सुकिलवासपरिहाणपरिहिया बालपुप्फधूवकडच्छूयहत्था गया / तओ पभावईए सव्वं बलिमादि काउं भणियं-'देवादिदेवो महावीरवद्धमाणसामी तस्स पडिमा कीरउ'