________________ . 27 निशीथविचारा: .. इय सत्तरी जहण्णा असिई नउई दसुत्तरं च सय / जइ वासइ मासरे दसराय तिण्णि उकोसा // 3154 // अर्था यथा-'इय' त्ति उपप्रदर्शने / जे आसाढचाउमासियातो सवीसइराए मासे गए पज्जोसविति तेसिं सत्तरि दिवसा जहण्णओ वासकाटुग्गा भवइ / कहं सत्तरि ? उच्यते-च उमासाण वीसुत्तरं दिवससय भवइ, सवीसइ मासेा पण्णासं दिवसा, ते वीसुत्तरसयमझाओ सेहिआ सेमा सत्तरि / जे भद्दवयस्स बहुलदसमीए पजजोसविति तेसिं असीइ दिवसा मज्झिमा वासकालाग्गहा भवइ / जे सावणपुण्णिमाए पज्जासविति सिं नउई दिवसा मज्झिमो चेव वासकालाग्गहा भवइ / जे सावणबहुलदसमीप पज्जीसविति तेसिं दहुत्तरसय मज्झिमा चेव वासकालोग्गहा भवइ / जे आसाढपुण्णिमाए पजोसविति तेसि वीसुत्तरं दिवसंसयं जेट्टो वासकालोग्गहा भवइ / सेसवरेतु वि दिवसपमाण वत्तव्यं / एवमाइपगारेहि वरिसारत्तं गिरोत्ते अछित्ता कांत्तयचाउमासियपडिवयाए अवस्सं निग्गंतव्व। अह मगसिरे मासे वासइ चिक्खल्लजलाउला पंथा तो अववाएण र उकासेण तिण वा दसराया जाव तंमि खेत्ते अच्छति / मार्गसिर पूर्णमासी यावत् इत्यर्थः / मग्गसिरपुण्णिमाए परओ जइ वि सचिनला पंथा वासं वा गाढ अणुवरय वासइ जइ विप्लवंतेहिं तहावि अवस्सं निगंतव्वं / अह ण णिग्गच्छंति तो चउगुरुगा एवं पंचमासिओ जेट्टोग्गहा जाओ / तथाहि पण्णासा पाडिजइ चउण्ह मासाण मज्झओ / तआ उ सत्तरी (जहण्णा) हाइ जहण्णा वासुवग्गहा // 3155 // तथा काऊण मासकप्प तत्थेव ठियाणऽतीयमग्गसि। / सालंबयाण छम्मासिओ अ जेट्रोगगहा हाइ // 3155 // जइ अस्थि पयविहारा चउ पाडिवयंमि हाइ निग्गमण / अहवा वि अणितस्सा आरावण पुवनिदिट्टा // 3157 //