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________________ उपासकदशाविचारा: 'अस्थि ण आणंदा ! गिहिणो जाव समुप्पजइ, नो चेव ण ए महालऐ, तं ण तुम एबस्स ठाणस्स आलोएहि निंदाहि गरिहाहि अहारिहं तवोकम्मं पायच्छित्तं पडिवजाहित्ति / (सू० 16) गौतमेनोक्तम् आनन्दं प्रति / आलोचनाविचारोऽयम् / जेणेव कुल्लाए सन्निवेसे, जेणेव मित्तनाइनियगसंबंधे परियणे, जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छइत्ता पोसहसालं पमजइ, पमजइत्ता उच्चारपासवणभूमि पडिलेहेइ दब्भसंथारयं संथरइ दब्भसंथारयं दुरुहइ, पोसहसालाए पोसहिए दब्भसंथारोवगए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मपण्णत्तिं उवसंपजित्ता णं विहरइ, आण द इतिशेषः / उपासकदशायाम् / तए ण सा भद्दा समणोवासयं चुलणीपियं एवं वयासी-नो खलु केइ पुरिसे तव जाव कणीयसं पुत्तं साओ गिहाओ निणेइ, निणेइत्ता तव अग्गओ घाएइ, एस ण केइ पुरिसे तव उवस्सग्गं करेइ / एस ण तुमे विदरिसणे दिट्रे तण्ण तुम इयाणि भग्गवए भग्गनियमे भग्गपोसहे विहरसि, तं गं तुमं पुत्ता ! एयस्स ठाणस्स आलोएहि पडिकमाहि निदाहि गरिहाहि विउद्याहि विसोहेहि अकरणयाए अब्भुट्टेहि अहारिहं तवोकम्मं पायच्छित्तं पडिवजाहि, तए ण से चुलणीपिया समणोवासए अम्मगाए भद्दाए समणोवासियाए तहत्ति एयमट्ट विणएण पडिसुणेइ पडिसुणेत्ता तस्स ठाणस्स आलोएइ जाव पडिवजइ इति / वृत्तिस्तु यथा-एस णतए विदरिसणे दिट्टत्ति / एतच्च त्वया विदर्शन-विरूपाकार विभीषिकादि दृष्टम् इति / एनमर्थ आलोचय-गुरुभ्यो निवेदय, पडिकमाहि-निवर्तस्व, निंदाहि-आत्मसाक्षिकं कुत्सां कुरु, गरिहाहि-गुरुसाक्षिकं कुत्सां विधेहि, विउट्टाहि वित्रोट्य तद्भवानुबन्धविच्छेदं विधेहि, विसोहेहि-अतिचारमलक्षालनेन, अकरणयाए अब्भुट्टेहि-तदकरणाभ्युपगमं कुरु, अहारिहं तवोकम्म
SR No.004392
Book TitleNishesh Siddhant Vichar Paryay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabhsagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year1973
Total Pages188
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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