________________ नि:शेषसिद्धान्तविचार-पर्याये 'जे छेए सागारियं न सेवइ, कट्ट एवमवि जाणो बिइया मंदस्स बालया' इति / वृत्तिस्तु-रहसि मैथुन कृत्वा पुनर्गुवा दिना पृष्टः सन्नपलपति, तस्य चैवमकार्यमपलपतोऽविज्ञापयतो वा द्वितीया मन्दस्य-अबुद्धिमत: एकमकार्यासेवनमियं बालता-अज्ञता, द्वितीया तदपह्नवन मृषावादः / आचारपञ्चमाध्ययनप्रथमोद्देशके / ... जाणिय त टणपण हुइ विसुत्तरुसउ मैथुनि पावइया मूलु श्रावापरायइ आरवणजा तह उवधासु / परदारि अवधूतियह जाता एकवार दस उबवासा / कुलवहु परदारियह सउ उववासु / जाणिउ लेकि वित्तरुप्सउ / प्रधान कुलपुत्रीराजपुत्रीमहत्तमपुत्रीसार्थवाहश्रेष्ठिपुत्री लोकि अजाणियउं असिउ सउ उववासह / लोकि टगपण उहूयउ मूलु / परिगाह नवहि ठाहेहि जाणंतर अतिक्रमु करइ नवहि ठाएहि उव० 10 / सम्वो विभंजइ उव. 120 / रात्रिभोजन असणखाइम जाणतउ निकारणि करई. परिभेगु उव० 3 पावईया मुक्कसंनिहि छटु / आईसंनिधि कांठउ दौरउ मुहतीत्रेपणइ पात्राबंधि पात्रह खरडियइ वासियइ उव० 1 / सेलिहि पारिसिहि उपवासु / अटुहि पुरिमड्ढेहि उव० 1 / इति प्रायश्चिरो / ( सम्प्रदायलिखितमिदम् ) पञ्चवस्तुकस्य यथाचिइवंदण 1 रयहरणं 2 अट्टा 3 सामाइयस्स उस्सग्गा 4 / सामाइयतियकड्ढण 5 पयाहिणं चेव तिक्खुत्तो // 15 // मुहपोत्तिय 1 रयहरणे 2 दाणि निसेन्जाउ 4 चालपट्टो य 5 / संथारुत्तरपट्टो 7 तिणि य कप्पा मुणेयव्वा 10 // केई भणति एकारसमो दंडओ /