________________ श्रीजैनज्ञान-गुणसंग्रह नमक, आटा विगैरह के बरतन खुले मुंह न रक्खें। चूले, पनेहरे पर, खाने तथा सोने की जगह पर, और घरटी तथा ऊखल पर कपडा कंतान या चंद्रोआ बांधना चाहिये जिस से किसी जीव का विनाश न हो। जीव जंतु की उत्पत्ति न हो वैसी हिफाजत से अनाज रक्खें / जल छानने के लिये उमदा खद्दर का गलना रक्खें और उस से जल छान कर जीवानी जैसा जल हो वैसे स्थान में डाले। अर्थात् मीठे जल का जीवानी मीठे जलाशय में और खारे का खारे में डाले, अन्यथा एक दूसरे में रद्दोबदल करने से उन जीवों का विनाश हो जाता है। सोने के मांचे पलंग या पाट में खटमल पैदा न होने देना चाहिये और किसी हालत में पैदा हो गये हों तो उन को धूप में न रखना चाहिये, क्यों कि ऐसा करने से जीव मर जाते है। भोजन या जल जूठा नहीं रखना चाहिये, क्यों कि उन में संमृच्छिम जीवों की उत्पत्ति और हिंसा होती है / मुख से लगा हुआ लोटा गिलास आदि मटकी में न डाले, क्यों कि ऐसा करने से मटकी का जल भी जूठा हो जाने के कारण वहां जीव उत्पन्न होते हैं। सूखे साक भाजी को देख भाल कर काम में लाना चाहिये। मीठाई पक्वान्न विगैरह सीआले (ठंडी) में एक महीना उन्हाले (गर्मी) में वीस दिन और चोमासे (वर्षाकाल) में 15 पंद्रह दिन के उपरांत न खाने चाहिये, क्यों कि उक्त काल