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________________ 44 ___3 श्रावक-द्वादश व्रत हिंसा का त्याग नहीं कर सकता, कारण कि सचित्त अनाज जल अग्नि आदि काम में लाता है इस वास्ते वीस विश्वा में से थावर संबन्धी दश विश्वा कम किये तब त्रस संबन्धी दश विश्वा शेष रहे। __ हिंसा दो तरह से होती है, संकल्प (इरादे) से और आरंभ से / गृहस्थ इरादे से त्रसहिंसा नहीं करेगा मगर आरंभ में अर्थात् घर बार संबन्धी कामों के करने में वह होही जायगी, इस कारण दश में से भी आरंभ के पांच विश्वा निकाल देने से शेष पांच विश्वा रहे। गृहस्थ संकल्प से भी निरपराध त्रसजीव की हिंसा टाल सकता है, अपराधी की नहीं, इस लिये सापराध के 2 // ढाई विश्वा कम करने पर शेष 2 // विश्वा रहे / निरपराध त्रस जीवों की संकल्प हिंसा भी अपेक्षा विशेष से हो जाती है इस वास्ते सापेक्षता का 11 सवा विश्वा कम करने पर शेष / विश्वा दया रहती है, बस इतनी ही दया वतधारी श्रावक से पल सकती है। उपयोग रखना चाहिये श्रावकों को अपने घर कामों में बहुत उपयोग रखना चाहिये जिस से कि निरर्थक किसी भी जीव की हिंसा न हो। उपले (छाणे) इंधन विगैरह जलाने को लेवे उन-को देख भाल कर लेवे ता कि उन में फिजूल जीव हिंसा न हो। घी, तैल, गुड,
SR No.004391
Book TitleJain Gyan Gun Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyavijay
PublisherKavishastra Sangraha Samiti
Publication Year1936
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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