________________ . श्रीजैनज्ञान-गुणसंग्रह - (3) भंग में भाव से हिंसा है, द्रव्य से नहीं, जीव मारने का उपाय किया मगर वह मरा नहीं, जैसे अंगारमर्दकाचार्य ने रात को जीव जान कर कोलसे पांवसे दबाये, यहां पर मारने का भाव था मगर द्रव्य से जीव नहीं मरा / (4) भंग में न द्रव्य से हिंसा है, न भाव से। जैसे मन वचन और काय इन तीन योगों को स्थिर कर काउस्सग्ग ध्यान में खडे मुनि में न द्रव्य से हिंसा है, न भावसे / बीस विश्वा और सवा विश्वा दया त्रस-चलते फिरते जीव और स्थावर-पृथिवी-जल-अग्निवायु और वनस्पति, ये पांच प्रकार के स्थिर जीव / इन त्रस और स्थावर जीवों की हिंसा का त्याग करने से वीस विश्वा दया होती है, ऐसी दया मुनि मार्ग में पाली जा सकती है। श्रावक सिर्फ सवा विश्वा ही दया पाल सकता है। यह हकीकत नीचे के विवेचन.से समझ में आयगी। "जीवा सुहुमा थूला, संकप्पारंभओ भवे दुविहा। सावराहनिरवराहा, साविक्खा चेव निरविक्खा // 1 // " ____ अर्थात्-जीव के दो भेद हैं-सूक्ष्म और स्थावर, अर्थात् स्थावर और त्रस इन दो भेदों में तमाम जीव आ जाते हैं,उन सत्र की रक्षा करना उस का नाम वीस विश्वा दया है। इस प्रकार की दया त्यागी मुनि रख सकते हैं, इस लिये मुनि की दया वीस विश्वा मानी जाती है। श्रावक थावर जीवों की