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________________ 42 , 3 श्रावक-द्वादश व्रत जैन श्रावक के लेने योग्य अनेक नियम अभिग्रहों में स्थूल प्राणातिपातविरमण आदि बारह व्रत मुख्य हैं जिनका संक्षिप्त स्वरूप नीचे दिया जाता है / स्थूलप्राणातिपातविरमण / स्थूल यानी बेइंद्रिय आदि बड़े जीवों के प्राणों के अतिपात (विनाश ) से विरमण-रुकना उसका नाम 'स्थूल प्राणातिषात विरमण' है / अर्थात् जीव हिंसा न करने की प्रतिज्ञा। जीवहिंसा के विषय में द्रव्य और भाव आदि से चतुर्भगी बनती है जैसे(१) द्रव्य और भाव से हिंसा। (2) द्रव्य से हिंसा भाव से नहीं। (3) भाव से हिंसा द्रव्य से नहीं। (4) द्रव्य से नहीं और भाव से भी नहीं। . (1) पहेले भंग की द्रव्य और भावसे हिंसा, जैसे कोई शिकारी 'मैं मारूं ऐसा शोचता हुआ मारने के इरादे से तीर फेंक कर जंगल में हिरण आदि का शिकार करता है, यहां पर द्रव्य जीव मारा जाता है और भाव मारने का इरादा होता है। ___ (2) भंग में द्रव्य से हिंसा है लेकिन भाव से नहीं, जैसे ध्यान पूर्वक चलते हुए मुनि के पैर नीचे कोई कीडी मर गई, यहां पर द्रव्य-कीडी की हिंसा हुई, मगर भाव से नही, क्यों कि भाव मारने का नहीं था।
SR No.004391
Book TitleJain Gyan Gun Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyavijay
PublisherKavishastra Sangraha Samiti
Publication Year1936
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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