________________ 482 रात्रिपोषध रात्रिपोषध 1 पौषधिक प्रकार ' रात्रिपोषधवाले दो प्रकार के होते हैं- एक तो आठ पहर का पोषध लेने वाले और दूसरे शामको रत्रियोषध लेने वाले / आठ पहर का पोषध लेने वालों को फिर रात्रिपोषध उच्चरने की जरूरत नहीं है। शाम को रात्रिपोषध लेने वाले भी दो तरह के होते हैंकोई प्रातः चार पहर का पोषध लेकर शामको रात्रिपोषध उच्चरते हैं और कोई केवल शाम को ही रात्रिपोषध लेते हैं। इनमें जो दिनके पौषधिक शामको रात्रिपोषध उच्चरते हैं उन को शाम की पडिलेहण के समय इरियावही से लेकर 'बहुवेल करशुं' तक की तमाम विधि दिवसपोषध की विधि मुजब ही करनी चाहिये, सिर्फ 'वेसणे संदिसाई' 'बेसणे ठाउं' ये दो आदेश लेने के बाद एक खमासमण दे के 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् सज्झायमा छु इस प्रकार का एक ही आदेश लेना और एक नवकार गिनना चाहिये, तीन नहीं। परन्तु जिनके दिवसपोषध नहीं है वे रात्रिपोषध लेते समय भी 'बहुवेल कर\' पर्यंत की तमाम विधि दिवसपोषधविधि के अनुसार करें।