________________ 368 5 पदसंग्रह आशात्याग पर पद (देशी-मान मायाना करनारा रे०) दुखकारी सतत दुरस्कारी रे, चित्त ! आशा तजो दुखकासे, सर्वज्ञानतणी हरनारी / चित्त०॥ आशावशे परघरमा रहीने, काम कयुं बहुवारा / मान रहित त्यां भोजन कीधु, काक परे शक धास रे / चित्त आशा ॥शा द्रव्यनी आशा दिलमाहिं धारी, नित्य सुणी. शठकाणी। जी जी करीने आजीजी कीधी, अन्ते हुई मानहाणी रे / चित्त अ० // 2 // श्रीमन्तपासे नित्य रहीने . सेवा करी कर जोडी / शेठ शेठ कहीं कंठ सुकायों, पाई नही एक कोडी रे। चित्त आशा० // 3 // . तीनजगतना स्वामी बिसारी, कोटिपति मन ध्यावे /