________________ 354 4 सज्झायसंग्रह उवट मारग चालतां, जावू पेले रे पार / आगल हाट न वाणीयो, शंबल लेजो रे सार // भू० // 10 // परदेशी परदेशमें, कुणसुं करो रे सनेह। आया कागल उठ चल्यो, न गणे आंधी ने मेह ॥भू० // 11 // केइ चाल्या ने चालशे, केइ चालणहार / ... केइ बेठा रे बुढा बापडा, जाये नरकमझार ॥भू० // 12 // जिणघर नोबत बाजती, थाता छत्तीस राग / खण्डेर थइ खाली पडया, बेठण लागा छे काग ।।भू० // 13 // भमरो आव्यो रे कमलमां, लेवा कमलनुं नूर। . . कमलनी वांछाए माहे रह्यो, जिम आथमते सूर ॥भू०॥१४॥ सद्गुरु कहे वस्तु वहोरिये, जे कोइ आबे रे साथ / आपणो लाभ उगारिये, लेखु साहिब हाथ // भू० // 15 //