________________ 355 श्रीजैनशान-गुणसंग्रह 5 पद-संग्रह लघुता भावना पद गय बिचार। लघुता मेरे मन मानी, लही गुरुगमः ज्ञान निशानी। मद आठ जिन्होने धारे, ते दुर्गति गये बिचारे / देखो जगत में प्राणी, दुख लहत अधिक अभिमानी // लघुता मेरे // 1 // शशी सूरज बडे कहावे, ते राहु के वश आवे / तारागण लघुताधारी, स्वर्भानुभीति निवारी / लघुता० // 2 // छोटी अति जोजनगन्धी, लहे षट्रसस्वाद सुगन्धि / करटी मोटाई धारे, ते छार शीश निज डारे // लघु० // 3 // जब बालचन्द होइ आवे, तब सहु जन देखण धावे / पूनम दिन बडा कहावे, तब क्षीणकला होइ जावे / लघु०॥४॥ गुरुवाइ मनमें वेदे, नृप श्रवण नासिका छेदे / अङ्गमांहे लघु कहावे, ते कारण चरण पूजावे / लघु०॥५॥ शिशु राजधाममें जावे, सखि हिल मिल गोद खिलावे / बडा होय जाण नवि पावे, जावे तो सीस कटावे / लघु० // 6 // अन्तर मदभाव वहावे, तब त्रिभुवननाथ कहावे / इह चिदानन्द यह गावे, रहणी विरला कोउ पावे / लघु०॥७॥