________________ 353 श्रीजैनझना-गुणसंग्रह मन ममरा की सज्झाय भूल्यो मन भमरा तूं क्यां भम्यो, भम्यो दिवस ने रात / मायानो बांध्यो प्राणियो, भमे परिमल जात / / भूल्यो०॥१॥ कुम्भ काचो रे काया कारमी, तेनो करो रे जतन / विणसतां चार लागे नहीं, निर्मल राखो रे मन्न / भू० // 2 // केना छोरु ने केना वाछरु, केना माय ने बाप / अन्त समय जासी एकलो, साथे पुण्य ने पाप // भू० // 3 // आशा तो डुंगर जेवडी, मरवु पगलारे हेठ / / धन संची संची कांइ करो, करो देवनी वेठ // भू०॥४॥ धन्धो करी धन जोडियो, लाखां उपर क्रोड / मरतांनी वेला मानवी, लीधो कन्दोरो छोड ॥भूल्यो० // 5 // मरख कहे धन माहरो, धोके धान न खाय / वस्त्र विना जई पोढवू, लखपति लाकडा मांय // भू० // 6 // भवसागर दुःखजले भर्यो, तरवो छ रे तेह। वचमां भय सबलो थयो, कर्म वायरो ने मेह // भू० // 7 // लखपति छत्रपति सब गया, गया लाख बे लाख / गर्व करी गोखे बेसता, सर्व थया बली राख / भू० // 8 // धमण धखन्ती रही गई, बूझ गई लाल अङ्गार। . एरण को ठपको मटयो, उठ चल्यो रे लुहार // भू० // 9 //