________________ 4 सज्ज्ञायसंग्रह नारी कहे सुणो साधुजी रे, वम्यो न लीए कोइ आहार रे। हस्ती चढीने खर पर कोण चढे रे, तमे छो कांइ ज्ञानना भंडार रे, नवी रे० // 8 // एडकीए वम्यो आहार जे करे रे, . ते नवि मानव आचार रे, जे तमे घर घरणी तज्या रे, . हवे तेनी करो शी संभाल रे, नवी रे० // 9 // धन्य बाहुबली शालिभद्रजी रे, धन्य धन्य मेघकुमार रे। . ...... स्त्री तजीने संजम जिणे लियो रे, .' धन्य धन्य तेह अणगार रे, नवी रे० // 10 // देवकी सुलसा सुत सागरूरे, नेमतणी सुणी वाणि रे। बत्तीस बत्तीस प्रिया तणारे, परिहर्या भोगविलास रे, नवी रे० // 11 // अंकुशवश गज आणीयो रे, राजुलमति रहनेम रे।