________________ . श्रीजैनज्ञान-गुणसंग्रह 349 चार वरस संजममा रह्या रे, . हैये धरता नागिलातुं ध्यान रे / ..... हुं मूरख में आ शुं कयु रे, नागिला तजी जीवनप्राण रे, नवी रे० // 3 // मात पिता एने नही रे, एकली अबला नार रे। तास उपर करुणा करी रे, हवे तेनी करवी संभाल रे, नवी रे // 4 // शशिवयणी मृगलोयणी रे, . चलवलती मेली घरनी नार रे / सोल वरसनी सा सुंदरी रे, सुंदरतनु सुकुमार रे, नवी रे० // 5 // उमर पाकेलं व्रत जे करे रे, हरखे ग्रही करमांहि रे। पाम्या ते शुभमति जेहनी रे, हुं तो पडीयो दुख जंजाल रे, नवी रे० // 6 // भवदेव भांगे चित्ते आवियो रे, अणओलखी पूछे घरनी नार रे / कोइए दीठी ते गोस नामिला रे, अमे छीये व्रत छोडणहार रे, नवी रे० // 7 //