________________ 348 4 सज्झायसंग्रह श्री जिनमंदिर पंच मनोहर, पंचवर्ण जिनपडिमा रे / ज्ञानी। जिनवर आगमना अनुसारे, . करिये उजमणानो महिमा रे / ज्ञानी० // 2 // पंचमी आराधनथी पंचम, केवलज्ञान ते थाय रे / ज्ञानी / विजयलक्ष्मीसरि अनुभव नाणे, संघ सकल सुखदाय रे / ज्ञानी० // 3 // नागिला की सज्झाय भवदेव भाइ घरे आविया रे, प्रतिबोधवा मुनिराज रे। हाथमां ते दीधुं घृतनुं पातरं रे, भाइ मने आघेरो वलाव रे, नवी रे परणी ते गोरी नागिला रे // 1 // इम करी गुरुजी पासे आविया रे, गुरुजी पूले दीक्षानो कांइ भाव रे / लाजे नाकारो तेणे नवि कर्यो रे, .. . दीक्षा लीधी भाइनी पास रे, नवी रे० // 2 //