________________ 347 * श्रीजैनशान-गुणसंग्रह ढाल चोथी हारे मारे ज्ञानीगुरुना वयण सुणी हितकार जो, चार विद्याधरी पंचमी विधिसुं आदरे रे लो। आं।॥१॥ हारे मारे शासनदेव पंचज्ञानमनोहार जो, टाली रे आशातना देववंदन सदा रे लो // 2 // हारे मारे तप पूरणथी उजमणानो भाव जो, एहवे विद्युत् योगे सुरपदवी वयाँ रे लो // 3 // हारे मारे धर्म मनोरथ आलस तजतां होय जो, धन्य ते आतम अवलंबी कारज कर्यां रे लो // 4 // हां रे मारे देवथकी तुम कूखे लियो अवतार जो, सांभल रोहिणी ज्ञान आराधन फल घणां रे लो // 5 // हारे मारे चारे चतुरा विनय विवेक विचार जो, गुण केता आलखिये तुम पुत्री तणारे लो॥६॥ ढाल पांचमी ज्ञानीना वयणथी चारों बहेनी, जातिस्मरण पामी रे / ज्ञानी गुणवंता / त्रीजा भवमां धारण कीधी, सीध्यां मननां कामो रे / ज्ञानी गुणवंता // 1 //