________________ 346 '4 सज्झायसंग्रह ___ गुरु कहे ज्ञान उपयोगथी रे, एक दिवसर्नु आय / एहवा वचन श्रवण सुण्या रे, मनमां विमासण थाय / अव० // 2 // थोडामां कार्य धर्मनां रे, किम करिये मुनिराज / गुरुकहे जोग असंख्य छ रे, ज्ञानपंचमी तुज काज / अब० // 3 // .. क्षण आराधे सवि अघ टले रे, सूत्र परिणामे साध्य / कल्याणक नव जिनतणां रे, पंचमीदिवसे आराध / अव०॥४॥ ढाल तीसरी, चैत्रवदि पंचमी दिने, सुण प्राणिजी रे। चविया चंद्रप्रभ स्वाम, लहे सुखठाम / सुण प्रा० / आं०। . अजित संभव अनंतजी, सुण प्राणिजी रे, पंचमी शुदि शिवधाम शुभपरिणाम / सुण // 1 // वैशाखसुदि पंचमी दिने, सुण०, संजम लिये कुंथुनाथ बहुनर साथ, सुण / जेठसुदि पंचमीदिने, सुग०, सुगति पाम्या धर्मनाथ, शिवपुरीसाथ, सुण प्राणि // 2 // श्रावण सुदि पंचमी दिने सुण०, जन्म्या नेमि सुरंग अतिउछरंग, सु० / मगसरवदि पंचमी दिने, सु०, सुविधिजन्म शुभसंग पुण्य अभंग / सु० // 3 // ___ कार्तिकवदि पंचमी तिथि सु०, संभवकेवलज्ञान करो बहुमान, सु० / दशक्षेत्रे नेउजिणंदना सु०,. पंचमीदिनना कल्याण सुखना निधान / सुण प्राणिजी रे // 4 // .