________________ . श्रीजैनज्ञान-गुणसंग्रह मुनिवर मधुकर सम कह्या, नहीं निश्रा नहीं दोष। लाधे भाडो देहने, अणलाधे सन्तोष / धम्मो० // 5 // अध्ययन पहिले दुमपुप्फे, सखरा अर्थ विचार / पुण्यकलशशिष्य जेतसी, धरमे जय जयकार / धम्मो० // 6 // .. पश्चमी की सज्झाय __ ढाल पहली श्री वासुपूज्यजिनेश्वरवयणथी रे, रूपकुम्भ कश्चन कुंभ मुनि दोय / रोहिणीमन्दिरसुन्दर आविया रे, नमी भव पूछे दम्पती सोय, चउनाणी वयणे रे दम्पती मोहिया रे // 1 // राजा राणी निज सुत आठनो रे, तप फल निजभव. धारी सम्बन्ध / विनय करी पूछे महाराजने रे, चार सुताना भवप्रबन्ध / चउ० // 2 // रूपवती शीलवती ने गुणवती रे, सरस्वती ज्ञानकला भण्डार / जन्मथी रोग शोग दीठो नही रे, कुण पुण्ये लीधो एह अवतार / चउ० // 3 // ___ ढाल दूसरी गुरु कहे वैताढय गिरिवरू रे. पुत्री विद्याधरी चार / निज आयु ज्ञानीने पूछियो रे, करवा सफल अवतार, अवधारो अम वीनती रे // 1 //