________________ . श्रीजैनज्ञान-गुणसंग्रह दइ उपदेश ने रुक्मिणी नारी, तारी दीक्षा आपी रे। युगप्रधान जे विचरे जगमां, सूरजतेजप्रतापी रे। सां० // 7 // ___ समकित शीयल तुम्ब धरी करमां, मोहसागर कयों छोटो रे। ते केम बूडे नारीनदीमां, एतो मुनिवर महोटो रे। सां० // 8 // . जेणे दुर्भिक्षे संघ लइ ने, मूक्यो नगर सुकाल रे / शासन शोभा उन्नति कारण, पुप्फपद्म विशाल रे / सां० // 9 // बौद्धरायने पण प्रतिबोध्यो, कीधो शासनरागी रे / शासन शोभा जयपताका, अंबर जइने लागी रे / सां० // 10 // विसर्यो शुंठ गांठिओ काने, आवश्यकवेला जाण्यो रे। विसरे नही पण एह विसरीयो, आयु अल्प पिछान्यो रे / सां० // 11 // लाख सोनये हांडी चढे जेने, बीजे दिन सुकाल रे / इम संभलावी वनसेनने, जाणी अणसण-काल रे। सां० // 12 // ___स्थावर्त गिरि जइ अणसण कीर्छ, सोहम हरि तिहां आवे रे / प्रदक्षिणा पर्वतने दइने, मुनिवर वन्दे भावे रे / सां० // 13 // .धन सिंहगिरि सूरि उत्तम, तेहना ए पटधारी रे / पद्म विजय कहे मुनिपदपङ्कज, नित नमीये नरनारी रे / सां०॥१४॥