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________________ 338 4 सज्झायसंग्रह वयरस्वामी सज्झाय सांभलजो तुमे अद्भुत वातो, वयरकुमर मुनिवरनी रे // 0 // . षमहिनाना शुरुझोलीमां, आवे केली करन्ता रे / तीन वरसना साधवी मुखथी अङ्ग अग्यार भणंता रे। सां० // 1 // राजसभामां नहीं क्षोभाणा, मातसुखडली देखी रे / गुरुए दीधो ओघो मुहपत्ति, लीधो सर्व उवेखी रे। सां०॥२॥ ___ गुरु संघाते विहार करे मुनि, पाले शुद्ध आचार रे / बालपणाथी महाउपयोगी, संवेगी शिरदार रे / सां० // 3 // कोलापाक ने घेवर भिक्षा, दोय ठामे नवि लीधी रे / गगनगामिनी वैक्रिय लब्धि, देवे जेहने दीधी रे। . सांभलजो०॥४॥ दश पूरव भणीया जे मुनिवर, भद्रगुप्तगुरुपासे रे / क्षीराश्रवप्रमुख जे लब्धि, परगट जास प्रकाशे रे / सां० // 5 // कोडी सेंकडा धनने संचये, कन्या रुक्मिणी नामे रे / शेठ धनावह दिये पण न लिए, वधते शुभपरिणामे रे / सांभ० // 6 //
SR No.004391
Book TitleJain Gyan Gun Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyavijay
PublisherKavishastra Sangraha Samiti
Publication Year1936
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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