________________ .. श्रीजैनज्ञान-गुणसंग्रह 337 माया मेली करी बहु भेली, लोभे लक्षण जाय / भयथी धन धरतीमा गाडे, उपर विषधर थाय / मा० // 4 // माया कारण दूर देशांतर, अटवी बनमा जाय / .. जाझ बेसीने द्वीप द्वीपान्तर, जइ सायर झंपलाय / मा० // 5 // शिवभूति सरखो सत्यवादी, सत्यघोष कहेवाय / रतन देखी तेह-मन चलियुं, मरीने दुर्गति जाय / मा०॥६॥ लब्धिदत्त मायाए नडियो, पडियो समुद्र मझार / मुख मारवणीयो थइने मरियो, पडियो ते नरक दुवार / मा०॥७॥ इंद्रे तो सिंहासन थापी, संभृये माया राखी / नेमीसर तो माया मेली, मुक्तिमा थया साखी / मा० // 8 // मन वचन कायाए माया, मेली वनमा जाय / धन्य धन्य तेह मुनीश्वर जेहना, तीन भुवन गुण गाय / माया०॥९॥ एहवू जाणी ने भवि प्राणी, माया मूको अलगी। समयसुन्दर कहे सार छ जगमां, धर्म रंगसुं लगी। माया कारमी रे० // 10 //