________________ 4 सज्झायसंग्रह .... साधवी वचन सुणी करी, चमक्या चित्त मझारो रे / हय गय स्थ सहु परिहर्या, बली आव्यो अहंकारो रे / वीरा // 5 // वैरागे चित्त वालियो, मूकी निज अभिमान रे / पग उपाडयो वांदवा, उपन्यु केवलज्ञान रे, वीरा मोरा० // 6 // .. पहोता केवली परखदा, बाहवली ऋषिरायो रे। अजरामर पदवी लही, समयसुन्दर वन्दे पायो रे / वीरा // 7 // मायासज्झाय , माया कारमी रे, माया म करो चतुर सुजाण / आंकणी। , माया वाह्यो जगत् विलुद्धो, दुखीयो थाय अजाण / जे नर मायाए मोही रह्यो तेणे, स्वप्ने नहीं सुख ठाण / माया कारमी रे० // 1 // नाना मोटा नरने माया, नारीने अधिकरी। वली विशेष अतिघणी व्यापे, घरडाने झाझेरी / माया कार० // 2 // जोगी जती तपसी संन्यासी, नग्न थइ परिवरिया। . उंधे मस्तक अग्नि धखन्ती, मायाथी न उगरिया / माया कार० // 3 //