________________ श्रीजैनज्ञान-गुणसंग्रह 335 - राय सुभूम पखंडनो धणी, लाभनो मद कीधो अपारो रे। हय गय रथ सवि सायर गयुं, गयो सातमी नरक मझारो रे। मद० // 9 // इम तन धन जोवन राजनो, म धरो मनमा अहंकारो रे / एह अथिर असत्य सवि कारमुं, विणसे क्षणमां बहुवारो रे / मद० // 10 // मद आठ निवारो व्रतधारी, पालो संयम सुखकारी रे। कहे मानविजय ते पामशे, अविचल पदवी नरनारी रे। मद० // 11 // पाहुबली की सज्झाय राजतणा अतिलोभिया, भरत बाहुबली जूझे रे। मुठी उपाडी मारवा, पाहुबली प्रतिबूझे रे // 1 // वीरा मोरा गजथकी उतरो, गज चढे केवल न होय रे। ऋषभ जिनेसर मोकली, बाहुबलीनी पासे रे। बीस मोरा गजथकी उतरो ब्राह्मी सुन्दरी इम भाषे रे / वीरा० // 2 // . __लोच करी चारित्र लियो, वली आयो अभिमानो रे। लघु बन्धव वांदुं नहीं, काउस्सग्ग रह्या शुभ ध्यानो रे / वीरा // 3 // वरस दिवस काउस्सग्ग रह्या, वेलडीये वीटाणारे। पंखीये माला घालिया, तापशीते सूकाणा रे / वीरा // 4 //