________________ 334 4 सज्झायसंग्रह हांजी जातिनो मद पहेलो कह्यो, पूर्वे हरिकेशीए कीधो रे। .. चण्डालतणे कुल उपन्यो, तपथी सवि कारज सीधो रे / मद० // 2 // ___ हांजी कुलमद बीजो दाखियो, मरीचिभवे कीधो प्राणी रे / कोडाकोडीसागर भव भम्यो, मद म करो एम मन जाणी रे / मद० // 3 // . . ____ हांजी बलमदथी दुख पामिया, श्रेणिक वसुभूति जीवो रे / जइ भोगव्यां दुख नरकतणां, मुख पाडंता नित रीवो रे / मद० // 4 // - हांजी सनतकुमार नरेसरु, सुर आगल रूप वखाण्युं रे। रोम रोम काया बिगडी गई, मद चोथा- ए टाणुं रे। मद० // 5 // ___ हांजी मुनिवर संयम पालतां, तपनो मद मनमाहि आयो रे / थया कूरगड्डु ऋषि राजिया, पाम्या तपनो अंतरायो रे। मद० // 6 // हांजी देश दशारणनो धणी, राय दशार्णभद्र अभिमानी रे / इन्द्रनी ऋद्धि देखी बूझीयो, संसार तजी थयो ज्ञानी रे। मद० // 7 // ___ हांजी स्थूलिभद्रे विद्यानो कर्यो, मद सातमो जे दुखदायी रे। श्रुत पूरण अर्थ न पामिया, जुओ मानतणी अधिकाई रे / मद० // 8 //