________________ . श्रीजैनज्ञान-गुणसंग्रह प्रभवो कहे जम्बू प्रते, दो विद्या मुज एह रे / कुमर कहे ए गुरुकने, छे विद्यानुं गेह रे / नमो नमो० // 3 // पांच से चोर ते बुझवी, घुझव्या माय ने ताय रे / सासु ससरा नारी बूझवी, संजम लेवाने जाय रे, नमो नमो० // 4 // - पांच से सत्तावीसवें, परिवयों जम्बूकुमार रे सोहम गणधरने कने, लीये चारित्र उदार रे, नमो० // 5 // वीरथी वीसमें वर्षे, थया युगप्रधान रे। चौद पूरव अवगाहीने, पाम्या केवलज्ञान रे, नमो० // 6 // वरस चोसठ पदवी भोगवी, थापी प्रभव स्वामी रे 1 अष्ट करमनो क्षय करी, थया शिवगति गामी रे, नमो नमो० // 7 // वरस अढार तेरोत्तरे, रह्या पाटण चोमास रे / चरमकेवली ने गावतां, होय लील विलास रे, नमो नमो० // 8 // महिमासागर सद्गुरु, तास तणे सुपसाय रे / जम्बू स्वामी गुण गाइया, सौभाग्ये धरिय उच्छाह रे, नमो नमो० // 9 // आठ मद की सज्झाय मद आठ महामुनि वारिये, जे दुर्गतिना दातासे रे। भी वीर जिप्सर उपदिशे, भाखे सोहम गणधारो रे / मद आठ० // 1 //