________________ 332 ४सज्ज्ञायसंग्रह . सनेही भोग ते रोग अनादिनो अनादिनो, पीडे छे आतम अङ्ग, सु०। सनेही ते रोगने शमाक्वा शमाववा, चारित्र छ रे रसांग, सु० // 4 // सनेही किंपाकफल अति फूटरां फूटरां, खातां लागे मिष्ट सु०। सनेही विष पसरे ज्यारे अङ्गमां अङ्गमां, त्यारे होवे अनिष्ट, सु० // 5 // सनेही दीपग्रही निज हाथमां हाथमां, कोण झंपावे कूप सु० / सनेही नारी ते विषवेलडी वेलडी, विषफल विषय विरूप, सु० // 6 // सनेही जो मुजसुं तुम स्नेह छे स्नेह छे, तो व्रत ल्यो थइ उजमाल, सु० / सनेही एहQ जाणीने परिहरो परिहरो, संसार मायाजाल, सु० // 7 // ढाल चोथी साया मा नादच्यानी वीच्या विचार एहवे प्रभवो आवियो, पांचसे चोरनी साथ रे। विद्याए ताला उघाडियां, धन लेवाने उमङ्ग रे, नमो नमो श्री जम्बूस्वामीने // 1 // जम्बूए नवपदध्यानथी, थंभ्या ते सवि चोर रे / थंभ तणी परे थिर रह्या, प्रभवो पाम्यो अचम्ब रे। नमो नमो० // 2 //