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________________ - श्रीजैनशान-गुणसंग्रह 331 पाय अलवाणे चालवु रे, फरवू देश विदेश / नीरस आहार लेवो सदा रे, परीसह केम सहीश, कुमरजी, व्रतनी० // 4 // कुमर कहे माता प्रते रे, ए संसार असार / तन धन यौवन कारिमा रे, जातां न लागेवार, माताजी, अनुमति० // 5 // माता कहे आल्हादथी रे, वत्स परणो शुभ नार / जोवन चय सुख भोगवी रे, पछे लेजो संजमभार, कुमरजी, व्रतनी० // 6 // ___मात पिताए आग्रह करी रे, परणावी आठे नार / जलथी कमल जिम भिन्न रहे रे, तिम रहे जम्बूकुमार, कुमरजी व्रतनी० // 7 // ढाल तीसरीप्रीतमने कहे कामिनी कामिनी, सुणो स्वामी अरदास सुगुणिजन सांभलो। सनेही अमृतस्वाद मूकी करी मूकी करी, कहो कोण पीवे छास, सुगु० // 1 // ___सनेही कामकलारस केलवो केलवो, मूको जी व्रतनो धन्ध, सुगु० / सनेही परणीने शु परिहरी परिहरो, हाथ मेस्यानो संबन्ध, सुगु० // 2 // ___ सनेही चारित्र वेलुकवल जिस्यु कवल जिस्युं, तेमां किस्यो छे सवाद, सुगु० / सनेही भोग सामग्री पामी करी पामी करी, भोगवो भोग आल्हाद, सुगुणि० // 3 //
SR No.004391
Book TitleJain Gyan Gun Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyavijay
PublisherKavishastra Sangraha Samiti
Publication Year1936
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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