________________ 330 4 सज्झायसंग्रह .. ग्रामानुग्रामे विचरता रे लाल, आव्या. सोहमस्वाम रे भवि० / पुरजन वांदण आविया रे लाल, साथे जम्बू गुणधाम रे, भविक०, भाव० // 5 // भविकजनना हित भणी रे लाल, दिये देशना गणधार रे भवि० / चारित्र चिंतामणिसारिखं रे लाल, भवदुखभञ्जणहार रे भविक०, भा० // 6 // देशना सुणी जम्बू रीझिया रे लाल, गुरुने कहे कर जोड रे भवि० / अनुमति लेइ मात तातनी रे लाल, संयम लेउं मन कोड रे भवि०, भा०॥७॥ दाल दूसरी-, गुरु वांदी घर आविया रे, पामी मन वैराग / मात पिता प्रते वीनवे रे, करसुं संसारनो त्याग माताजी अनुमति द्यो मुज आज, जिम सीझे वंछित काज माताजी। अनुमति० // 1 // चारित्र पन्थ छे दोहिलो रे, व्रत छे खांडानी धार / लघु वय छे वत्स तुम तणुं रे, किम पले पश्चाचार कुमरजी, व्रतनी म करो वात, तुं मुज एक अंगजात कुमरजी, व्रतनी म करो वात // 2 // - एकलविहारे विचर, रे, रहेQ वन उद्यान / भूमि संथारे पोढवु रे, धरवु धर्मनुं ध्यान / कुमरजी, व्रत नी० // 3 //