________________ 340 4 सज्झायसंग्रह नन्दिषेण मुनिसज्झाय ढाल पहली राजगृही नगरीनो वासी, . श्रेणिकनो सुत सुविलासी हो, मुनिवर वैरागी / नन्दीषेण देशना सुणी भीनो, ना ना कहेता व्रत लीनो हो, मुनिवर० // 1 // चारित्र नित्य चोखं पाले, संजम-रमणीसुं महाले हो, मुनिवर० / एक दिन जिनपाय लागी, गोचरीनी आज्ञा मांगी हो, मुनिवर० // 2 // पांगरियो मुनि वेरवा, क्षुधा वेदनी कर्म हरेवा हो, मुनिवर० / उंच नीच मध्यम कुल महोटा, . अटतो सञ्जमरस लोटा हो, मुनिवर० // 3 // एक उंचो धवल घर देखी, मुनिवर पेठो शुद्धगवेषी हो, मुनिवर० / तिहां जइ दीधो धर्मलाभ, बेश्या कहे यहां अर्थलाभ हो, मुनिवर // 4 //