________________ 328 4 सज्झायसंग्रह देराणीकी रतनडाबडी, बहुलां रतन चुरायां / झगडो करंतां न्याय हुओ जब, तब कछु नाणा पाया, हो गौतम०।४। ऐसा शराप दिया देराणी, तुम संतान न होजो। कर्म आगल कोइर्नु नवि चाले, इंद्र चक्रवर्ती जोजो, हो गौतम०।५। भरतराय जब ऋषभने पूछे, एहमां कोइ जिणंदा। मरीचि पुत्र त्रिदण्डी तेरो, चोवीसमो जिनचंदा हो, गौतम० // 6 // __कुलनो गर्व कियो मैं गौतम, भरतराय जब वांद्या / मन वचन कायाए करीने, हरख्यो अति आणंदा, हो गौतम० // 7 // कर्मसंयोगे भिक्षुककुल पाम्यो, जन्म न होवे कबहु / इंद्रे अवधे जोतां अपहरियो, देव भुजंगमबाहु, हो गौतम०।८। ___ब्यासी दिन हुँ तिहां कणे वसीयो, हरिणिगमैषी जब आया / सिद्धारथ त्रिशलादेराणी, तस कूखे छटकाया, हो गौतम० // 9 // ऋषभदत्त ने देवानंदा, लेशे संयम भारा / तब गौतम ए मुक्त जाशे, भगवती सूत्र विचारा, हो गौतम० // 10 // सिद्धारथ त्रिशलादे राणी, अच्युत देवलोक जाशे / बीजे खंधे आचारांगे, एह बात कहेवाशे, हो गौतम० // 11 / / तपगच्छ श्री हीरविजयसूरि, दियो मनोरथ वाणी / सकलचंद प्रभु गौतम पूछे, उलट मनमा आणी, हो गौतम०।१२।