________________ श्रीजैनज्ञान-गुणसंग्रह 327 सीता नारी गमावीने रे, भमियो ठामो ठाम / भविक० // 3 // दशमा गुणठाणा लगे रे, लोभतणुं छे जोर / शिवपुर जातां जीवने रे, एहज महोटो चोर / भविक० // 4|| क्रोध मान माया लोभथी रे, दुर्गति पामे जीव / परवश पडियो बापडो रे, अहोनिश पाडे रीव / भविक०।५। परिग्रहना परिहारथी रे, लहिये शिवसुख सार / देव दानव नरपति थइ रे, जाशे मुक्ति मझार। भविक० // 6 // भावसागर पंडित भणे रे, वीरसागरबुध शिष्य / लोभतणे त्यागे करी रे, पहोचे सयल जगीश / भविकजन० // 7 // देवानन्दा की सज्झाय / जिनवररूप देखी मन हरखी, स्तनमें दूध झराया। तव गौतमकुं भया रे अचंभा, प्रश्न करनकुं आया हो गौतम ! वो तो हमेरी अम्मा // 1 // तस कूखे तुम काहुं न वसिया, कवण किया इणे कम्मा। वव श्री वीर जिणंद इम बोले, एह किया इणे कम्मा, हो गौतम०॥ त्रिशलादे देराणी हुंती, देवानंदा जेठाणी / विषयलोभ करी कांइ न जाण्यो, कपट वात मन आणी हो, गौतम० // 3 //