________________ 308 .4 सज्झायसंग्रह भोग वम्या रे मुनि मनथी न इच्छे, नाग अगंधन कुलना जेम रे, देव० / धिक कुल नीचा थइ नेहथी निहाले, न रहे संजम शोभा एम रे, देवरिया० // 6 // एवा रसीला राजुल बयण सुणीने, बुझ्या रहनेमि प्रभुजीपास रे, देव०। पाप आलोइ फरी संजम लीधुं, अनुक्रमे पाम्या शिववास रे, देवरि // 7 // धन्य धन्य जे नर नारी शीयलने पाले, समुद्रतर्यासम व्रत छ एह रे, देव० / रूप कहे तेहना नामथी होवे, ' अम मन निर्मल सुन्दर देह रे, देव० // 8 // अरणिक मुनि सज्झाय अरणिक मुनिवर चाल्या गोचरी, तडके दाझे सीसोजी / पाय अलवाणो रे बेलु परजले, तनसुकुमाल मुनीशो जी। अर० // 1 // - मुख कमला| रे मालती फूल ज्यु, उभा गोखनी हेठो जी / खरी बपोरे रे दीठा एकला, मोही मानिनी ठेठो जी। अर० // 2 //