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________________ श्रीजैनशान-गुणसंग्रह 309 वयणरंगीली रे नयणे वींधीया, मुनि थंभ्या तेणे ठाणो जी / दासीने कहे जा रे उतावली, मुनि तेडी घर आणो जी। अर० // 3 // पावन कीजे रे मुज घर आंगणुं, वहोरो मोदक सारो जी। नवयौवनरस काया क्यु दहो, सफल करो अवतारो जी। अर० // 4 // चन्द्रवदनीए चारित्र चूकव्यु, सुख विलसे दिन रातो जी / एक दिन रमतां रे गोखे सोगठे, तव दीठी निज मातो जी / अर० // 5 // ___अरणिक अरणिक करती मा फिरे, गलिए गलिए मझारो जी / कहो कोणे दीठो रे मारो अरणिलो, पूछे लोक हजारो जी। अर० // 6 // हुं कायर छु रे. मारी मावडी, चारित्र खांडानी धारो जी। धिक धिक विषया रे मारा जीवने, में कीधो अविचारो जी। अर० // 7 // गोखथी उतरी रे जननीपाय पडयो, मनसु लाज्यो अपारो जी / वछ तुज न घटे रे चारित्र चूकवू, जेहथी शिवसुख सारो जी / अर० // 8 // ... एम समजावी रे पाछो वालिओ, आण्यो गुरुनी पासो जी / सद्गुरु दिये रे शीख भली परे, वैरागे मन वासो जी। अर० // 9 //
SR No.004391
Book TitleJain Gyan Gun Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyavijay
PublisherKavishastra Sangraha Samiti
Publication Year1936
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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