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________________ 3064 सज्झायसंग्रह मरुदेवी माता की सज्झाय : तुज साथे नहीं बोलु ऋषभ जी, तें मुजने विसारी जी। अनन्तज्ञाननी तुं ऋधि पाम्यो, तो जननी न संभारी जी। तुज // 1 // मुजने मोह हतो तुज ऊपर, ऋषभ ऋषभ करी जपती जी अन्न उदक मुजने नवि रुचतु, तुज मुख जोवाने तपति जी। तुज०॥२॥ तुं बेठो शिर छत्र धरावे, सेवे सुर नर नारी जी। तो जननी ने केम संभारे, जाणी जाणी प्रीति ताहरी जी। तुज // 3 // तुं केहनो ने हुं वली केहनी, नथी रहां कोइ केहy जी। ममता मोह धरे जे मनमां, मूर्ख पणुं सहि तेहर्नु जी / तुज० // 4 // ___अनित्य भावनाए चढ्या मरुदेवा, बेठां गयवर खंधो जी / अन्तगड केवली थइ गया मुक्ते, ऋषभने मन आणंदो जी / तुज० // 5 // रहनेमि की सज्झाय .. काउसग्ग ध्याने मुनि रहनेमि नामे, .. रह्या छ गुफामां शुभपरिणाम रे।
SR No.004391
Book TitleJain Gyan Gun Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyavijay
PublisherKavishastra Sangraha Samiti
Publication Year1936
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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