________________ - श्रीजैनशान-गुणसंग्रह 305 परभव जातां पल्लव झाले, ते मुजने देखाडो / आ० // 3 // मगसिरं शुद इग्यारस महोटी, नेउ जिनने निरखो / दोढसो कल्याणक म्होटा, पोथी जोइने हरखो / आ.॥४॥ सुव्रत शेठ थयो शुध्ध श्रावक, मौन करी मुख रहिओ। पावक पुर सघलो परजाल्यो, तेहनो कोइ न दहिओ। आ०॥५॥ आठ पहोर पोसो ते करिये, ध्यान प्रभुनु धरिये / मन वच काया जो वश करिये, तो भवसायर तरिये / आ०॥६॥ ईर्यासमिति भाषा न बोले, आई अवलं पेखे। पडिकमणासुं प्रेम न राखे, कहो केम लागे लेखे / आ० // 7 // कर ऊपर तो माला फरती, जीभ फरे मुखमाही / चित्तडं तो चिहुं दिसि डोले, इण भजने सुख नाही / आ०॥८॥ पौषध शाला भेगां थइने, चार कथा वली सांधे / कांइक पाप मिटावण आवे, बारगणुं वली बांधे / आ० // 9 // एक उठती आलस मोडे, बीजी उघे बेठी। नदियां मांहेथी कंइक निसरती, जइ दरियामां पेठी। आ०॥१०॥ आई बाई नणंद भोजाइ, नानी मोटी वहूने। सासु ससरो मा ने मासी, शीखामण छ सहुने / आ० // 11 // उदयरतन याचक उपदेशे, जे नर नारी रहेशे / पोसा साथे प्रेम धरीने, अविचल लीला लहेशे। आज म्हारे० // 12 //