________________ 304 4 सज्झायसंग्रह वसतिमें से बार निकाला, जंगल किया ठिकाना। - यारो हक मरना० // 1 // हाथी चढते घोडे चढते, और आगें निशाना। नीली पीली बेरख चलती, उत्तर किया पयाना। यारो हक मरना० // 2 // नरपति हो के तखतपर बैठे, मरिया भारी खजाना। सांझ सवेरे मुजरा लेते, उपर हाथ बेकाना। - यारोहक मरना० // 3 // पोथी पढकर हिंदु भूले, मुसलमीन कुराना / रूपचंद कहे सुनो भाइ संतो, हरदम प्रभु गुण गाना। यारो हक मरना०॥४॥ एकादशी की सज्झाय आज म्हारे एकादशी रे, नणदल मौन करी मुख रहिये / पूछयानो पडुत्तर पाछो, केहने काइ न कहिये / आज म्हारे० // 1 // महारो नणदोई तुजने वाहलो, मुजने ताहरो वीरो / धूआडाना बाचका भरतां, हाथ न आवे हीरो। आज म्हारे॥२॥ परनी धन्धो घणो कयौँ पण, एक न आवे आडो।