________________ 301 - श्रीजैनज्ञान-गुणसंग्रह समकितभेदे भावनारूप सज्झाय .... चाखो नर समकित सूरखडली, दुःख भूखडली भाजे रे। चार सदहणा सवैया लाडु, तीन लिंग फीणा छाजे रे // चारखो० // 1 // दशविध विनय दोठा मीठा, त्रण शुद्धि सखर सुहाली रे। भाठ प्रभावक जनने रागी, वली दोषे करी टाली रे // चालो० // 2 // भूषण पांच जलेची कूली, छविह जयणा खाजारे / लक्षण पांच मनोहर घेवर, छठाण गुंदवडा ताजा रे // चाखो० // 3 // ___ छ आगार नागोरी पंडा, छ भावना पण पूडी रे / सत सठ भेद ए नव नवी वाणी, समकित मूखडी रूडी रे / / चाखो० // 4 // श्री जिनशासन चोक्टे मांडी, सिद्धांत थाली सारी रे। ए चाखे अजरामर थावे, शिष्य सुदर्शन प्यारी रे। चाखो० // 5 // मुनिगुणसज्झाय ऐसे मुनिजन देखे वनमें, ए तो समतारस लीननमें / ऐसे मुनिजन० // 1 // - भूप सहे शिखरन के ऊपर, मगन रहे.ज्ञानन में। ऐसे० // 2 //