________________ 300 4 सज्झायसंग्रह ___ आवे काल फिरे यम दोला, हुवे सितांगा खोला रे / नाडयां तूटे काढे यम डोला, जीवडो खाय हिलोला रे॥ इम० // 5 // सहु मिलि अपणो रोणो रोवे, तेहनी गति कुण जोवे रे। जो स्वारथ पूग्यो नवि होवे, तो पूठे ही विगोवे रे / / इम०॥६॥ - म्हारो म्हारो करी रह्यो घेलों, जग स्वारथनो मेलो रे। ऊठी चलेगो हंस अकेलो, विछडयां मिलयो दोहेलो रे // इम० // 7 // धन संपद वादल जिम छाया, चंदने चरची काया रे / एह संसारनी काची माया, छोडीने शिवपद पाया रे // इम० // 8 // धर्म तणो शरणो ले मोटो, छोड दे मारग खोटो रे। दया धर्मनो ले तूं ओठो, कदी न आवे त्रोटो रे ॥इम०॥९॥ राजा चक्रवर्ती महाबलिया, काले अनंता गलिया रे। कर्मज तूटे शिवसुख मलिया, अवर संसार में कलिया रे॥ इम० // 10 // रात दिवस जिनजी सम ध्यावे, मन वांछित फल पावे रे। प्रेम ने राज सदा सुख पावे, विजयरत्न गुण गावे रे॥ इम० // 11 //