________________ श्रीजैनज्ञान-गुणसंग्रह 299 वार इकवीश धोइ जलमांहे, तेह पिंड खाइ जल पीवो। एहवो तप सुणतां जीव कंपे, धन धन थांरो जीवो हो ॥धना० // 4 // चउद सहस मुनीश्वर मांहे, आपने वीरजी वखाण्या। दरिशन नितपते पुण्यवंत पावे, अमे पण आज पिछाण्या हो धना० // 5 // नव मास लगे संजम पाली, सर्वार्थसिद्धिमें जाय / राम कहे ऐसे मुनीश्वर, निश्चे मुक्ति पद पाय हो।धन्ना० // 6 // सद्गुरुसदुपदेशसज्झाय ... इम सद्गुरु जीवने समझावे, नरभव अथिर देखावे रे / सो तो साचा सेंण कहावे; जे जिनधर्म शुगावे रे।। इम० // 1 // ___हुंती ते कुंकुमवरणी देही, उपमा दीजे केही रे। व्हाला मिलिया संगा स्नेही, बाले घोचा देइ रे // इम० // 2 // - केना काका ने केनी काकी, कांइ म जाणे बाकी रे। स्वास्थ विण सहु जावे थाकी, भगवन् इण परे भाखी रे // इम० // 3 // पहेरण मलिया कडा ने मोती, वाग वेस ने धोती रे। घणी ज मेली आथी ने पोथी, धर्म विना सहु थोथी रे // इम० // 4 //