________________ 298 4 सज्झायसंग्रह विजयकमलसूरीश्वरराजा, तपगच्छधोरी कहाया। मोकले वास देइ गण साथे, दानविजयगणिराया / आ० // 9 // ओगणीस सो पंचोत्तेर माघनी, शुदि पंचमी बुधवारे / / गच्छपतिपद पाम्या गुरुवरजी, संघना जय जयकारे / आ० // 10 // गुरु घणुं जीवो वली जसदीवो, प्रगटावो जगमांहे / करी कल्याण संघ, निशदिन, पर उपकार उच्छाहे / आ० // 11 // 4 सज्झाय-संग्रह श्री धन्नाजी की सज्झाय धन्ना मुनि धन मानव भव पायो, श्रीमुख इम फरमायो हो / धन्ना० आंकणी // श्रेणिक पूछे वीरजिन भाषे, उत्तम मुनीश्वर सारा। रज मांहे तज तरतम योगे, धन धन्नो अणगारा हो ॥धन्ना०॥१॥ नारी बत्तीस तजी अपछरसी, धन बत्तीसय कोड / यह संसार असार जाणीने, शिवपुरी साहामा दोड हो॥धना०॥२॥ निरन्तर तप बेले बेले, आंबिल उचित आहार / जेह मुख काग श्वान नवि चाहे, किम तमे कंठे उतारो हो ॥धन्ना०॥३॥