________________ 296 3 स्तवनसंग्रह श्रीपुंडरीकस्वामिस्तवन / (राग वणजारा की) पुंडरीक गणधर स्वामी, पूछे आदिजिनंद सिरनामी / आंकणी। संसार समुद्र है भारी, प्रभु कैसे हुवे झट पारी। कर्म कटे कब मेरा, मिटे जन्म मरण का फेरा / पुंडरी० // 1 // कहे प्रभु सिद्ध गिरि जाना, जहां मोक्षगति तुम पाना / अजर अमर होइ जावे, निज कर्म पटल टल जावे / पुं० // 2 // सुण कर के तिहां जावे, किया ध्यान करम गल जावे / पांच क्रोड मुनिवर साथे, लिया मुक्ति वधू.सुख हाथे। पुं० // 3 // चैत्री पूनम दिन पूजा, करतां नर भव हो दूजा। ध्यान धरो दिल रंगे, गुणगान करो उछरंगे / पुंड० // 4 // तीन भुवन में यह भारी, नामे सिद्धगिरि सुखकारी / सौभाग्यविजय दिल ध्यावे, भवसागर पार लहावे / . पुंडरीक० // 5 //