________________ 294 3 स्तवनसंग्रह श्री सिद्धाचल स्तवन . जिनंदा तोरे चरण कमलकी रे, हु चाहुं सेवा प्यारी, तो नाशे कर्म कठारी, भव भ्रांति मिट गइ सारी / जिनंदा० // 1 // विमलगिरि राजे रे, महिमा अति गाजे रे। वाजे जग डंका तेरा, तूं सच्चा साहिब मेरा / बालक चेरा तेरा / जिनंदा० // 2 // करुणा कर स्वामी रे, तूं अंतरजामी रे / नाभि जग पूनमचंदा, तूं अजर अमर सुखकंदा। . तूं नाभिरायकुल नंदा / जिनंदा० // 3 // इणगिरि सिद्धा रे मुनि अनंत प्रसिद्धा रे / श्री पुंडरीक गणधारी, पुंडरीकगिरि कहारी, ए सहु महिमा तारी। जिनंदा // 4 // तारक जग दीठा रे, पाप पंक सह निठा रे / इच्छा मो मन में भारी, में कीधी सेवा तारी / हुं मास रही शुभ चारी / जि० // 5 // बिरुद निहारो रे, अब मोहे तारो रे। तीर्थ जिनवर तो भेटी, जन्म जरा दुःख.मेटी / . हुं पायो गुणनी पेटी। जिनंदा० // 6 //