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________________ 290 3 स्तवनसंग्रह नाथविहुणुं सैन्य ज्यु रे, वीरविहुणो रे संघ / साधे कोण आधारथी रे, परमानंद अभंगोरे / वीर० // 2 // मातविहुणो बाल ज्यु रे, अरहो परहो अथडाय / वीरविहुणा जीवडा रे, आकुल व्याकुल थाय रे / वीर० // 3 // संशयछेदक वीरनो रे, विरहो केम खमाय / जे दीठे सुख उपजे रे, ते विण केम रहेवाय रे। .. वीर० // 4 // निर्यामक भवसमुद्रनो रे, भव-अडवी-सथ्थवाह / . ते परमेश्वर विण मले रे, केम.वाधे उत्साहो रे / , वीर० // 5 // वीर थकां पण श्रुततणो रे, हतो परम आधार / हवे इहां श्रुत आधार छ रे, अहो जिनमुद्रा सार रे। वीर० // 6 // त्रण काले सवि जीवने रे, आगमथी आणंद / सेवो ध्यावो भविजना रे, जिनपडिमा सुखकंदो रे।। वीर० // 7 // गणधर आचारज मुनि रे, सहुने इणि परे सिद्ध / . भव भव आगम संगथी रे, देवचंद्र पद लीध रे वीर० // 8 //
SR No.004391
Book TitleJain Gyan Gun Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyavijay
PublisherKavishastra Sangraha Samiti
Publication Year1936
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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