________________ श्रीजैनज्ञान-गुणसंग्रह जिनप्रतिमाने हो जे माने नहीं, तेहनो सघलो फोक / श्री० // 3 // प्रतिमाने आगे हो नमुत्थुणं कहे, पूजा सत्तर प्रकार। फल पिण बोल्यां हो हित सुख मोक्षनां, द्रौपदीने अधिकार / श्री० // 4 // रायपसेणी हो ज्ञाता भगवती, जीवाभिगमादिमांझ / ए सूत्र माने हो प्रतिमा माने नही, माहरी माय ने वांझ / श्री० // 5 // साधुने बोल्यो हो भावस्तव भलो, श्रावक ने द्रव्य भाव / ए बेहु करणी हो करतां निस्तरे, श्रीजिनप्रतिमा प्रभाव / . . . श्री० // 6 // पारसनाथ हो तुज प्रसादथी, सद्दहणा मुज एह / भव भव हो जो हो समयसुंदर कहे, श्रीजिनप्रतिमासु नेह / / श्री० // 7 // दीवाली बीरप्रभु स्तवन मारग देशक मोक्षनो रे, केवल ज्ञान निधान / भाव दया सागर प्रभु रे, पर उपगारी प्रधानो रे / धीर प्रभु सिद्ध थया, संघ सकल आधारो रे, हवे इण भरतमां, कोण करशे उपगारो रे / वीर० // 1 //