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________________ 278 - 3 स्तवनसंग्रह - दुष्षम समयमां इण भरते, अतिशयनाणी कोइ नवि वरते, कहीये कहो कोण सांभलते रे / श्री० // 3 // श्रवणो सुखिया तुम नामे, नयणा दर्शन नबि पामे, एतो झगडाने ठामे रे / श्री० // 4 // * चार आंगल अंतर रहेg, शोकलडीनी परे दुख सहे, प्रभु विना कोण आगल कहेवु रे / श्री० // 5 // . __महोटा महेर करी आपे, बेहुनो तोल करी थापे, सज्जन जस जगमां व्यापे रे / श्री० // 6 // , बेहुनो एकमतो थावे, केवल नाणजुगल पावे, तो सवि वात बनी आवे रे / श्री० // 7 // गजलांछन गजगतिगामी, विचरे विप्राविजय स्वामी, नयरी विजया गुणधामी रे / श्री० // 8 // ___मात सुताराये जायो, दृढरथनरपतिकुल आयो, पंडित जिनविजये गायो रे / श्री० // 9 // श्री चंद्राननजिनस्तवन चंद्रानन जिन, सांभलीये अरदास रे। मुज सेवक भणी, छे प्रभुनो विसासो रे / चंद्रा० // 1 // भरत क्षेत्र मानवपणो रे, लाधो दुष्पमकाल / जिन पूरवधर विरहथी रे, दुलहो साधन चालो रे / चंद्रानन० // 2 //
SR No.004391
Book TitleJain Gyan Gun Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyavijay
PublisherKavishastra Sangraha Samiti
Publication Year1936
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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