________________ . श्रीजैनशान-गुणसंग्रह 279 द्रव्यक्रियारुचि जीवडा रे, भावधरमरुचिहीन / उपदेशक पण तेहवा रे, शुं करे जीव नवीन रे। चं // 3 // तत्वागम जाणग तजी रे, बहु जन सम्मत जेह / मूढ हठी जन आदर्यो रे, सुगुरु कहावे तेह रे / चं० // 4 // आणा साध्य विना क्रिया रे, लोके मान्यो रे धर्म / दंसण नाण चारित्रनो रे, मूल न जाण्यो मर्म रे। चं० // 5 // गच्छकदाग्रह साचवे रे, माने धर्म प्रसिद्ध / आतमगुण अकषायता रे, धर्म न जाणे शुद्ध रे। चं० // 6 // तत्त्वरसिक जन थोडला रे, चहुलो जनसंवाद / जाणो छो जिनराजजी रे, सघलो एह विनोद रे / चं० // 7 // नाथचरणवंदनतणो रे, मनमा घणो उमंग / पुण्य विना केम पामिये रे, प्रभु सेवननो संग रे। चं० // 8 // जगतारक प्रभु वंदिये रे, महाविदेहमझार / वस्तुधर्म स्याद्वादता रे, सुणि करिये निरधार रे / चं० // 9 // तुज करुणा सहु उपरे रे, सरखी छे महाराय / / पण अविराधक जीवने रे, कारण सफलो पाय रे।चं० // 10 // एहवा पण जग जीवने रे, देव भगति आधार / प्रभु समरण थी पामिये रे, देवचंद्र पद सार रे। चं० // 11 //