________________ 276 __ 3 स्तवनसंग्रह __कुंथु अर मल्लि मुनिसुव्रत, नमि नेमि जयकारी रे। पार्श्व वीरप्रभु समरण करतां, आपो शिववधू सारी रें। ऊठ० // 4 // ___पुंडरीक पमुहा मुनिवर वंदूं, गुणवंता ऋषिराज रे / सोल सतीनां समरण करतां, सीझे वंछित काज रे // ऊठ० // 5 // थावर जंगम तीरथ जगमें, जे वंदे नरनारी रे। कीर्तिकमला ते भवि पामे, मोक्षतणा अधिकारी रे ऊठ० // 6 // , श्री सीमंधरजिनस्तवन श्रीसीमंधर साहिबा, हुं किम आएँ तुम पास हो मुणिंद / दूर विचे अंतर घणो, मुने मिलवानी घणी आश हो मुणिंद // श्रीसीमंधर० // 1 // हुं इण भरतने छेहडे, तुमे प्रभु विदेहमझार हो मुणिंद / डुंगर वली नदियांधणी, तिहां कोश तो केइ हजार हो मुगिंद। श्रीसी० // 2 // .. ......... , - प्रभुजी देता होशो देशना; कांड सांभले जिहांना लोग हो मुणिंद / धन्य ते गाम नगर पुरी, ज्यां पर्ते पुन्यसंयोग हो मुणिंद / श्रीसी० // ... ... .... धन्य ते श्रावक श्राविका, कांइ निरखे प्रभु मुखचंद हो मुजिंद / मुज़ मनोरथ मनतणा, कांइ फलशे भाग्य अमंद हो मुणिंद / श्रीसी० // 4 //