SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 294
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 272 275 श्रीजैनज्ञान-गुणसंग्रह * श्रीमहावीरजिनस्तवन (राग-कानूडा तारी कामण०) वीरजी तारी पावनकरनारी, मनमां आंखलडी लागी। मीठी वली सेवकमनवशकरनारी, मनमां० // भवभय हरनारी तुम सुणवा, वाणी सुखकारी / हूं चाहूं हूं चाहूं जिनवर थइने हुंसियारी, मनमां // 1 // दर्शन नर नारी तुम करवा, आवे दिल धारी / तूं दाता तूं दाता शिवसुख थइने शिवचारी, मनमां०॥२॥ अघहर उपकारी प्रभु तुम छो, आतमहितकारी / हूं मागु हूं माणू सुखकर वल्लभ भव पारी, मनमां आंखलडी लागी० // 3 // श्री.चौवीसजिनस्तवन - ऊठ प्रभाते आदिजिननु, चेतन समरण कीजे रे। दिन दिन आनंद मंगल वाधे, जगमां जस बहु लीजे रे ।।ऊठ०॥१॥ ____ ऋषभ अजित संभव अभिनंदन, सुमतिनी सेवा कीजे रे। पद्म सुपार्श्व प्रभुता आपो, चंद्रप्रभु सुख दीजे रे // ऊठ० // 2 // . सुविधि शीतल श्रेयांस ध्याचो, वासुपूज्य विख्याता रे। विमल अनंत धर्मजिन शांति, अनुभव सुखना दाता रे // ऊठ० // 3 //
SR No.004391
Book TitleJain Gyan Gun Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyavijay
PublisherKavishastra Sangraha Samiti
Publication Year1936
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy