________________ 271 श्रीजैनज्ञान-गुणसंग्रह स्वामीदरिसण समो निमित्त लही निर्मलो, जो उपादान ए शुचि न था। दोष को वस्तुनो अथवा उद्यम तणो,. स्वामीसेवा सही निकट लाशे / तार० // 4 // स्वामीगुण ओलखी स्वामिने जे भजे, दरिसणशुद्धता तेह पामे / ज्ञान चारित्र तप वीर्य उल्लासथी, . कर्म झीपी वसे मुक्ति धामे / तार हो० // 5 // जगतवत्सल महावीर जिनवर सुणी, चित्त प्रभुचरणने शरण वासो। तारजो बापजी बिरुद निज राखवा, दासनी सेवना रखे जोशो / तार० // 6 // चीनती मानजो शक्ति ए आपजो, भावस्याद्वादता शुद्ध भासे / साध्य साधक दशा सिद्धता अनुभवी, देवचंद्र विमल प्रभुता प्रकाशे / तार० // 7 // . श्रीमहावीरस्तवन __(आवो आवो पासजी० यह देशी) चाला प्रभु वीरजी सुखकारा रे, मारा प्राणथकी छो प्यारा / वाला० आं०।